रीवांश की लाल आँखे और होठों पर लगा ताजा खून देखकर उसे सच समझते देर नही लगी। फिर सबूत के तौर पर नीचे उस आदमी की लाश भी तो पड़ी थी। उसकी सच्चाई जानकर वह डरकर पीछे हो गई, "तो ये है तुम्हारी सच्चाई? क्या कहा था तुमने कि तुम भी रास्ता भटक गए हो। यह तो अच्छा हुआ कि मुझे वहां पर एक टॉर्च गिरा हुआ मिला, जो कि शायद तुम्हारे ही किसी शिकार का गिरा होगा। तुम ही हो ना वो राजकुमार रीवांश... इतने सालों तक जंगल से जो लाशे मिलती है, उन सब को तुमने ही मारा है। तुम इतने मासूमों की जान ऐसे कैसे ले सकते हो। शायद लोग सच ही कहते हैं तुम्हारे बारे में..... कि तुमने शक्तियां पाने के लिए शैतानी प्रक्रियायें अपनी मर्जी से की थी।" डरते हुए भी आकांक्षा ने अपनी सारी बातें उसके सामने रख दी थी।
रीवांश सामान्य रूप में वापस आ गया था, ताकि आकांक्षा को उससे डर ना लगे।
"आप हमें गलत समझ रही है शहजादी..!"
आकांक्षा ने गुस्से में जवाब दिया, "मै क्या गलत समझ रही हूं? बल्कि अभी सही समझा है तुम्हें ... मुझे पता है तुम मुझे भी मार दोगे ना..!"
"हम आपको कभी नहीं मार सकते हैं। अगर मारना होता तो अब तक मार चुके होते.... हमें तो आपको देखते ही आपसे प्या..!"
आकांक्षा ने बात को काटते हुए कहा, "एक शैतान कभी किसी से प्यार नहीं कर सकता.... वह जानता है तो सिर्फ किसी की जान लेना।" वो वहाँ से दुर जाने लगी, "और मेरे पीछे मत आना। हां अगर मारना ही है, तो यहीं पर मार दो। तुम्हें तो ज्यादा मेहनत भी नहीं करनी पड़ेगी।"
रीवांश ने दुखी होकर जवाब दिया, "हम आपको क्यों मारेंगे ? हमने बताया ना कि आपको देखते ही हमें आपसे प्यार हो गया था। आप बहुत मासूम है,,,, बिल्कुल किसी बच्चे की तरह.... हम पूरे दिन से आपकी एक-एक बात पूरे ध्यान से सुन रहे हैं। प्लीज एंजेल आप ऐसे अकेले आगे मत जाइए..... इस जंगल में बहुत खतरा है आपके लिए।"
आकांक्षा उससे थोड़ा दूर पहुंच चुकी थी लेकिन फिर भी उसके कानों में उसके आवाज एकदम स्पष्ट सुनाई दे रही थी। वो दूर से चिल्लाते हुए बोली, "और सबसे बड़ा खतरा तुमसे ही है। मेरे पीछे मत आना तुम..!"
"जैसी आपकी मर्जी...... अब आपकी सुरक्षा की ज़िम्मेदारी हमारी है। हम आपको जंगल में अकेले नहीं भटकने दे सकते। हम आपसे प्यार करते हैं, लेकिन यहां के बाकी पिशाच नहीं। उन्होंने आपको देख लिया तो 1 मिनट नहीं चलेगा आप का शिकार करने में....।"
आकांक्षा उसकी बातों को अनसुना करते हुए चल रही थी। जबकि बाकी पिशाचों का ख्याल आते ही रीवांश वहां से चला गया और उसी वक्त जंगल के पिशाचों को एक जगह पर इकट्ठा किया।
पिशाचों का नेतृत्व करते हुए सबसे बुजुर्ग पिशाच जीवन ने पूछा,"युवराज..... आपने ऐसे हम सबको यहाँ एक साथ क्यों बुलाया? क्या फिर कोई संकट आन पड़ा है? उन दुष्टों को तो हमने कैद कर लिया था ना?"
"क्या बॉस..... अपुन अभी च किसी लड़की को पटाने का प्लान बना रेला था... तुमने बीच मे डिस्टर्ब कर डाला.!" एक दूसरा पिशाच बोला।
उसकी बात काटकर बिनॉय,जो कि उम्र मे ज्यादा बड़ा नही था, परंतु फिर भी काफी समझदार था, ने कहा, "कि होलो राजकुमार? क्या वो चारों फिर से आज़ाद हो गए क्या? उन्होंने फिर से आपको परेशान करने की कोशिश की?"
रीवांश ने उन सबको चुप करवाते हुए बोला, "शशश्अअ.... चुप हो जाइए आप सारे.... कोई हमें बोलने का मौका नहीं दे रहा। सुबह से वो कुछ बोलने नही दे रही और अब आप सारे भी शुरू हो गए!"
"वो कौन युवराज ?" जीवन ने पूछा।
"जंगल में कल रात को एक लड़की गलती से आ गई थी। शायद उसके पास कुछ अच्छी शक्तियां हैं.... तभी जब वह आई तो उसके चारों तरफ से एक अद्भुत रोशनी का घेरा था। शायद इसी वजह से हम उसकी तरफ खिंचे चले गए। हमने बहुत कोशिश की कि उन्हें पता ना चले कि हम कौन हैं..!" बोलते हुए रीवांश का चेहरा उतर गया, "लेकिन उन्हें पता चल गया कि हम एक सामान्य इंसान नहीं है.... और वह गुस्सा करके यहां से चली गई है। हम नहीं चाहते कि आप में से कोई भी उनका शिकार करें।"
"अरे बॉस .... हम क्यों तुम्हारे शिकार पर हाथ डालेगा ? तुम बिंदास होकर उसका खून पीना.... और पार्टी करना आज रात।" मोहित ने आदतन फिर बीच मे बोला, तो जीवन ने उसे डांटा,"मोहित तू अपना मुंह बंद रख.... अगर युवराज को उनका शिकार करना होता, तो अब तक जिंदा नहीं होती वो लड़की। वह उन का शिकार नहीं करना चाहते बल्कि उन्हें बचाना चाहते हैं। अब ऐसा क्यों है, ये तो वो खुद ही बेहतर जानते है।"
"पता नही दादा, ऐसा क्यों है। लेकिन वो हमसे नाराज होकर चली गयी है। फिर भी हम कोशिश करेंगे कि कल सुबह तक उन्हें वापस जंगल से बाहर भेज दें। बस तब तक आप सब उनसे दूर रहिएगा। याद रखिएगा कि उन्हें कोई नुकसान नहीं होना चाहिए।"
"लगता है बॉस, आपको भी प्यार हो गेला (गया) है।" मोहित फिर बड़बड़ाया।
उसकी बात सुनकर सारे पिशाच उसकी तरफ देखने लगे, जबकि रीवांश मुस्कुराते हुए वहाँ से आकांक्षा की तरफ जाने लगा।
★★★★
अगले ही पौ फटने से पहले राजपुरोहित जी पूजा संपन्न करवा कर वापस मंदिर में लौट चुके थे। उनके लौटने की खबर सुनकर जानवी और राजवीर जी तुरंत उनसे मिलने के लिए उनके कक्ष में गए।
"प्रणाम राजपुरोहित जी...!" राजपुरोहित जी को देखते ही राजवीर जी ने आदरपुर्वक अपने दोनो जोड़ लिए, "पहचाना आपने मुझे ? हम वो...!"
"शांत हो जाइए श्रीमान। जिसे हम मिल चुके होते हैं, उन्हें हम कभी नहीं भूलते। आज आपका मन इतना अशांत क्यों है?" राजपुरोहित जी शांत चित से जवाब दिया।
राजवीर जी जानवी के साथ उनके समक्ष बैठ गए।
"प्रणाम राजपुरोहित जी..!" जानवी ने वहाँ बैठने से पहले बोला।
"खुश रहो बेटी..!" राजपुरोहित जी ने जानवी को आशीर्वाद देते हुए कहा, "यह तो आप की पोती नहीं लग रही है।"
उनकी बात सुनकर राजवीर जी ने हैरानी से उनकी तरफ देखा और कहा,"आपको कैसे पता कि आकांक्षा नही है?"
"मैंने कहा था ना, हर इंसान अपने एक लक्ष्य को लेकर पैदा होता है... और ना चाहते हुए भी ऊपर वाला उसे उस लक्ष्य के करीब पहुंचा ही देता है। लगता है आपकी पोती आकांक्षा अपने लक्ष्य के करीब पहुंच गई है। तभी उसकी चिंता आपको इतने सालों बाद यहां मेरे पास खींच लाई।
राजवीर जी और जानवी हैरानी से राजपुरोहित ने की तरफ देखने लगे। उन्होंने अभी तक उन्हें कुछ नहीं बताया था। उसके बावजूद राजपुरोहित जी ने परिस्थिति को सटीक पहचान लिया था।
उनके सवालिया चेहरे को देख कर राजपुरोहित जी ने मुस्कुराते हुए कह, "हैरान मत होइए श्रीमान.! हम भी आप ही की तरह एक सामान्य इंसान हैं। आपके चेहरे पर चिंता की लकीरें आपके मन की अशांति का इशारा कर रही हैं। अब बताइए कि क्या हुआ?"
"मेरी अक्षु शिमला से आगे वाले जंगल में पहुंच गई है। लोग कहते हैं वह जंगल शापित है..... और वहां पर पिशाचों का डेरा है।" राजवीर जी ने नम आँखो से कहा, " राजपुरोहित जी मेरी बच्ची को बचा लीजिये। वो मेरा इकलौता सहारा है।"
"जिस जगह स्वयं शैतान की परछाई पड़ी हो, वह धरती पवित्र हो भी कैसे सकती है?" लगता है आपकी पोती का जन्म धरती माँ को उस बोझ से छुटकारा दिलाने के लिए हुआ है, जो वो सदियो से सह रही है।"
"मेरी बच्ची की जान को कोई खतरा तो नहीं है ना राजपुरोहित जी?"
"आप के चेहरे पर चिंता का नही गर्व का भाव होना चाहिए, कि उपरवाले ने आपकी पोती को एक विशिष्ट कार्य के लिए चुना है। जिस कुदरत ने उसे शक्तियां दी है, वही उसकी हर पल रक्षा भी करती है। आप बिल्कुल फिक्र मत कीजिए। आकांक्षा को कुछ नहीं होगा।"
"पर जंगल में पिशाच...!" जानवी ने धीमी आवाज मे कहा।
" जरूरी नहीं होता कि सभी बुरी शक्तियां बुरी ही हो। कई बार बुराई में भी अच्छाई छुपी हो सकती है... और उन्हीं बुराई में कुछ अच्छाई भी हैं, जो अनजाने में शैतान की गुलाम बन गई है।" राजपुरोहित ने उसकी शंका को दूर किया।
"आपके कहने का मतलब है कि उन पिशाचों में कुछ अच्छी पिशाच भी हैं, जो कि अक्षु की रक्षा करेंगे। तब तो अक्षु को कोई खतरा नहीं होगा ना?" जानवी ने पूछा।
राजपुरोहित जी– "हां आशा तो यही है। लेकिन कहते है कि उस जंगल से कोई भी जिंदा वापस नहीं आ पाया है। बुराई को अच्छाई पर हावी होते देर भी नहीं लगती। ऐसे मे आकांक्षा को अपनी शक्तियों को पहचान कर बुराई का सामना करना होगा।"
"लेकिन मेरी बच्ची अकेले उन पिशाचों से कैसे लड़ेगी?" राजवीर ने हैरानी से कहा, "उसे तो अपनी शक्तियों का पूर्णतया आभास भी नहीं..!"
उनकी बात सुनकर राजपुरोहित जी ने कुछ देर आँख बन्द करके सोचा और फिर कहा, "आप लोग तैयार होकर मंदिर के प्रांगण में पहुंचे। हम वहां देवी मां से प्रार्थना करेगे और आकांक्षा की मदद करने की कोशिश भी ..... कल सूरज की पहली किरण निकलने के पहले भोर मे एक विशेष बड़ी पूजा करेगे.... बाकी आपको पंडित जी सब समझा देंगे।"
राजपुरोहित जी के कहे अनुसार जानवी और राजवीर जी मंदिर के प्रांगण में तैयार होकर छोटी पूजा के लिए पहुंचे। उस पूजा मे उन राजपुरोहित जी सहित एक और पंडित तथा राजवीर जी और जानवी भी सम्मिलित हुए।
ये पूजा आकांक्षा की रक्षा के लिए की जा रही थी।
★★★★
आकांक्षा रीवांश से छिपते छिपाते जंगल मे घूम रही थी, जबकि रीवांश साये की तरह उसके साथ था। रात बिताने के लिए वो पेड़ पर चढ़ गई थी। हालांकि उसे समय का कोई अंदाजा नही था, लेकिन आँख खुलते ही वो पेड़ से नीचे उतर आई थी।
आकांक्षा रास्ता ढूंढते हुए खुद से बात कर रही थी।
"पता नहीं इस जंगल का अंतिम छोर कहां पर है? रात तो जैसे तैसे पेड़ के ऊपर चढ़कर बिता दी। यहां तो दिन में भी डर लगता है। पता नहीं टाइम भी क्या हो रहा होगा? एक तो इतनी भूख लगी है ना कि एक कदम भी नहीं चला जा रहा।"
तभी उसे किसी के कदमो की आहट सुनाई दी। उसे सुनकर वो थोड़ा डर गयी।
"कौन..!" आकांक्षा ने घबराते हुए बोला, "क....क... कौन है वहां पर ? प्लीज मुझे मत मारना..!"
रीवांश ने उसकी तरफ फल फेंकते हुए बोला, "ये लिजिए शहजादी..... आपको भूख लगी थी ना।"
"तुम फिर से आ गए? लगता है मुझे नहीं, तुम्हें भूख लगी है, जो तुम मुझे मारने के लिए मेरे पीछे आए हो।"
रीवांश ने मुस्कुरा कर जवाब दिया, "हमें अगर आपको मारना होता, तो हम आपको कब का मार चुके होते। आप हमारे पास आइए, हम आपको उठाकर जंगल से बाहर फेंक देते हैं। आपको हम सुरक्षित यहाँ से बाहर निकाल देंगे।"
"क्या.... तुम पागल तो नहीं हो गए हो? मैं क्यों आऊंगी तुम्हारे पास... तुम्हारा क्या भरोसा .... मेरा खून पी जाओ तो। देखो मैंने लास्ट मंथ ही डॉक्टर से चेक करवाया था। मेरे अंदर तो ऐसे ही खून की कमी है.... तुम्हारा तो पेट भी नहीं भरेगा।" आकांक्षा वहाँ से तेजी से आगे बढ़ने लगी।
"आप हमारे सामने रहिए ना, हमारा पेट भरे या ना भरे, हमारा मन खुश रहेगा।"
आकांक्षा ने रीवांश के फेंके हुए फल खाते हुए कहा, "देखो मुझे भूख लगी है, इसलिए खा रही हूं.... और यहां पर कोई और है भी नहीं, जो मेरी मदद कर सके।"
"इसका मतलब आप हम पर विश्वास करती हैं? डरिए मत.! हमने जंगल के सभी पिशाचों को बोल दिया है कि वह आपसे दूर रहे। आपको अब कोई खतरा नहीं है।"
रीवांश की बात सुनकर आकांक्षा डर कर नीचे बैठ गयी।
"क्या.... जंगल में और भी पिशाच है। हे भगवान! कहां फंस गयी हूँ मै..... कहीं ये लोग मिलकर पार्टी ना मना ले..... और पता चला कि मैं निपट गई।"
"तो क्या हम आपको फेंक दे जंगल के बाहर?"
आकांक्षा वहाँ से भागते हुए चिल्लाई,"मैं बोल रही हूं.... तुम मेरे पीछे मत आना।"
"हम बता रहे है, आप एक पिशाच से तेज नहीं दौड़ सकती शहजादी..!" अगले ही पल रीवांश उसके आगे खड़ा था।
Karan
28-Dec-2021 03:07 PM
Story going intresting....
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Arpit Singh
25-Dec-2021 10:49 PM
Intresting intresting👌👌👌👌👌👌👍👍👍👍💪💪💪💪💐💐 story
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